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अत्याचारियों की थकान / मंगलेश डबराल
Kavita Kosh से
अत्याचार करने के बाद
अत्याचारी निगाह डालते हैं बच्चों पर
उठा लेते हैं उन्हें गोद में
अपने जीतने की कथा सुनाते हैं
कहते हैं
बच्चे कितने अच्छे हैं
हमारी तरह नहीं हैं वे अत्याचारी
बच्चॊं के पास आकर
थकान मिट जाती है उनकी
जो पैदा हुई थी करके अत्याचार ।
(रचनाकाल :1980)