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अदर्शन / थीक न्हात हन / सौरभ राय
Kavita Kosh से
पत्ते की नोंक झुक रही है
ओस भारी हो चली है।
कुछ फल पक रहे हैं
सुबह के ओर देखते हुए
सूरज की रोशनी में कुमुद चमक उठा है
बगीचे की ओर बढ़ते रास्तों पर बादल का दूधिया पहरा
सरक रहा है
मैं देख रहा हूँ वैराग्य और बचपन को
एक साथ
बड़ी देर रात को
एक दिया बुझते-बुझते रह गया
एक कली खिल गई है
दूर रेगिस्तान में कहीं;
कहीं एक ठण्डा-सा तारा
जिसने ज़िन्दगी में खेत नहीं देखा
नहीं देखा दुख, सुख
पेड़ पौधे खलिहान नहीं देखे
एक ठण्डा तारा
अदृश्य हो गया इस क्षण –
जैसे एक सन्तान विषाद।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सौरभ राय