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अदाकारी की अदलाबदली / कमलेश कमल
Kavita Kosh से
थाम मेरी उँगली
बढ़ाना पहले क़दम का
जूते की ची-ची से
तुम्हारा किलक उठना
एक दृश्य भर नहीं है
उम्मीद की किरण है
आँखों के कैमरे में कैद
और मन के प्रिज्म से
परावर्तित
सहसा निकल आया
कल्पना के क्षितिज पर
एक इन्द्रधनुषी दृश्य
तुम्हारा बढ़ना, गिरना
उठ कर खड़े होना
जीतना, लड़ना
हार नहीं मानना
और इन सबसे ऊपर
एक जगमग आस
कि थाम यही उँगली
कभी फिर चलोगे तुम
तब यही उँगली
यह प्रिज्म
ये कैमरे
हो जाएँगे जर्जर
दोनों किरदार वही होंगे
बस होगी
अदाकारी की अदला-बदली