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अदावत रोज़ होती है, महोब्बत रोज़ मरती है / आनंद खत्री

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सभी को ये शिकायत है, शिकायत क्यूँ नहीं करते
हमें तुम ये बताओ तुम, मुहब्बत क्यूँ नहीं करते

हजारों झूठ से, बेहतर है, ख़्वाहिश को भुला डालो
कहो तुम सच की, सपनों से हिफाज़त, क्यों नहीं करते

कहाँ पर खो गये हैं हम, नहीं मालूम खुद हमको
मगर तुमको भुलाने की हिमाकत, क्यों नहीं करते

अदावत रोज़ होती है, महोब्बत रोज़ मरती है
जहाँ वाले भी नफरत को ही, आदत क्यों नहीं करते