भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अधकचरों को मंच दिया / रामकिशोर दाहिया
Kavita Kosh से
हम तो
अंधे घुप्प कुआँ में
अनुमानों की
गणित लगाकर
लट्ठ भाँजते रहे धुआँ में
पूँजीपति
जकड़ते जकड़ा
हम वैभव के
आधिपत्य में
बाँधे भूख
पेट पर कपड़ा
जीत-जीत
जीवन की बाजी
हार रहे कुछ और जुआ में
ट्रेड प्रशिक्षण
टेक्नोलॉजी
खट्टे हैं
अमरूद लोमड़ी
जनता में
बेहद नाराजी
उच्च शिक्षा
दे ऊँचाई
पंचायत
तो छूत-छुआ में
रोजगार के
वे मन्सूबे
बल आजमाए
व्यवसायों में
बने संविदा
जीवन ऊबे
अन्तर कितना
आज नौकरी
मालगुजारी के बँधुआ में
तंत्र प्रशासन
और मीडिया
पहुँच विहीन
नहीं चोटी पर
अधकचरों को
मंच दिया
प्रतिभागी में
प्रतिभा तो है
किन्तु !
पहुँच है नहीं मुआ में
-रामकिशोर दाहिया