अधिकार / विजय कुमार विद्रोही
आज प्रतिफल चाहिये,हर रोज़ प्रतिपल चाहिये ,
आज मैंने जो किया उसका मुझे फल चाहिये ।
अधिकार है मेरा मुझे अधिकार मेरा आज दो ,
तीरगी को तुम सहो उजला सबेरा आज दो ।
क्यूँ रहूँ कठिनाई में दायित्व ये मेरा नहीं,
तुम सँभालो तुम निहारो कृत्य ये मेरा नहीं ।
क्यूँ कहा था ? तुम मेरे संसार के रखवार हो ,
मेरे जीवन में सुखों के ढेर हो अम्बार हो ।
मैंने ही तुझको चुना है मैंने ही तुमको गढ़ा है ,
मैं ही हूँ जिसकी बदौलत आज तू आगे खड़ा है ।
काश मैं तुझसे उलट उस दूसरे को तारता ,
कम से कम बच्चों को मेरे भूख से ना मारता ।
कह रहे हो टैक्स भर दो, क्यूँ भरूँ मैं वाह जी ! ,
अपनी मेहनत की कमाई तुमको दे दूँ वाह जी !
मुझको क्या मतलब है सारे देश के नुकसान से ,
जिंदगी अपनी जियूँगा मरते दम तक शान से ।
मैं पिता हूँ , मैं पति हूँ , पुत्र हूँ दायित्व है ,
मेरे धन पर सिर्फ अपना मेरा ही स्वामित्व है ।
क्या किया है देश ने मेरे लिये कि मैं करूँ ,
तुम हो ज़िम्मेदार इसके तुम सहो,मैं क्यूँ मरूँ ।
सारे कर्तव्यों को मेरे छोड़ सागर पार दो ,
मैं नागरिक हूँ देश का मुझको मेरा अधिकार दो ।