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अधिकार / शशि सहगल
Kavita Kosh से
मेरे पास अपना बहुत कुछ था
मेरी मिट्टी
मेरी नदी
मेरा धर्म
पर आज लगता है
जहाँ मैं पैदा हुई
जिस मिट्टी में खेली
जिस नदी से प्यास बुझाई
उसे अपना कहने के लिए
लेनी होगी इजाज़त
सत्ता से
फैलाना पड़ेगा हाथ
धर्म और मज़हब के सामने
इसके बाद भी
क्या मेरा कुछ हो सकेगा अपना