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अधूरा-पूरा / कर्मानंद आर्य

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वे कहते हैं
वे इतिहास बनायेंगे
चूहों को मारकर
बिल्लियों को डकारकर
खरगोशों को उलट-पलटकर
वे कहते हैं
अभी तक कुछ नहीं हुआ
पैंसठ साल गुजर गए
हम पैंसठ दिन में लायेंगे सुराज
कागज़ के इतिहास के लिए
बहा देंगे खून की नदियाँ
छीन लेंगे किताबें
पकड़ा देंगे चूरन चटनी
मुखविरों की एक सेना बनायेंगे
चाटुकारों की दूसरी फ़ौज
मिरासियों से बचवायेंगे देश का भाग्य
सोच को सुराही की शक्ल दे देंगे
वे कहते हैं अच्छे दिन लायेंगे
वे चुन रहे हैं लार्ड कर्जन, लार्ड रिपन, लार्ड मेयो
वे मुन्ना को दलाल बनायेंगे
अच्छे दिन आने वाले हैं
वे सबको मुर्गा बंटवायेगे
वे कहते हैं इतिहास अधूरा है
इतिहास को खून के धब्बों से भरना जरुरी है