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अधूरा सच / राजीव रंजन
Kavita Kosh से
दूर आसमान में निकले
सितारे की चमक से
आँखें चौंधिया रही है
कितना तेज ! कितना सुन्दर !
अब मेरे दिलो दिमाग पर
उसका तेज हावी होता जा रहा है
बिल्कुल हीरो के माफिक ।
आँखों से होकर दिमाग के
रास्ते वह जुनून पर सवार हो
हृदय में मेरे प्रवेश कर जाता है
लेकिन यहा क्या !!
अचानक उस सितारे
के पीछे मुझे बड़ा ही
बदसूरत अंधेरा नजर आता है
स्याह काला
बिल्कुल बुझा-बुझा
निस्तेज अंधेरा !!
तभी दिमाग में कौंधता है
इस चमकते सितारे की
यही सच्चाई है क्या?
तभी वह जुनून दिमाग को
झकझोरता है और उसे
मजबूर करता है
अंधेरे की जगह
सितारे की चमक और
सुन्दरता देखने को
फिर उस जुनून के आगे
हृदय हारता है, फिर आँखें
और अंत में दिमाग भी
समर्पण कर देता है
अधूरे सच को पूरा सच
मानने को मजबूर होकर ।