भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनकहा / गोबिन्द प्रसाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


काग़ज़ और क़लम के बीच
जो अनकहा रिश्ता है
शायद वह कविता है
शब्दों और होठों के बीच
कहने के बावजूद जो फिसलता गया
रेत की तरह मुट्ठियों से
वह समुद्र है कविता का
लहराता,मुझसे टकराता
चूर-चूर होकर भी मुझमें
हाहाकार मचाता
किसी बंजर ज़मीन पर
उगने की चाह लिए