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अनगाए / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
इससे गायन का जीवन और बढ़ेगा
अनगाए ही कुछ प्राण छंद रहने दो
तुम स्वयं बुला कर मुझे न मुझ से बोलो
मैं प्रश्न करूँ तुम अधर न अपने खोलो
चलते चलते मिल जाएं कभी जो पथ पर
तुम जान-बूझ कर राह पराई हो लो।
इस से मन का उद्वेलन ऐर बढ़ेगा
मैं खटकाऊँ तुम द्वार बन्द रहने दो।
तुम मुझे ओट से चिलमन की ही झांको
बदली में रहने दो गोरे चंदा को
मैं परख न पाऊं निरख निरख कर हारूं
ऐसे रंगों से चित्र प्रणय का आको।
मेरा तुम से अपनापन और बढ़ेगा
मत बांधो बंधन में, स्वच्छंद रहने दो।
अनकही कथा अनकही व्यथा यह उलझन
इनसे ही बढ़ता जीवन का आकर्षण
रहने दो कुछ अनसमझा अनजाना ही
अतिशय परिचय का मधुरे दो न प्रलोभन।
मंज़िल के प्रति सम्मोहन और बढ़ेगा
तुम पथ प्रदीप की ज्योति मन्द रहने दो।