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अनजान दिशाएँ / सजीव सारथी
Kavita Kosh से
वक्त के पंखों की परवाज़.
कुछ अनजान दिशाओं की खोज,
एक सोच, एक सीख,
एक मशवरा, एक बोध,
किताबों की लिखावट, जेहन में उंडेलकर,
किसी तजुर्बे के पत्थर से,
जो टकराओ तो थाम लेना,
किसी मजबूत इरादे की बेल,
कोई खतरा नहीं,
‘जीवन’ है ये खेल.
किसी कश्ती पर बैठकर,
दूर किनारों को ताकना.
सब की तरह, या कूद जाना,
पानी में, तैरना सहारों के बिना,
छोडो ये घबराना,
लहरों के क्रोध से,
हवाओं के वेग से,
डूबना तो एक दिन किनारों को भी है,
फिर क्यों, नाखुदा को खुदा कहें,
क्यों सहारों को ढूंढते रहें,
आओ वक्त के पंखों को परवाज़ दें,
एक नयी उड़ान दें,
अनजान दिशाओं की और....