भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनथके से नयन / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अन थके से नयन चित्र सजने लगे।
भाव मन में सरस फिर उभरने लगे।

छंद अनुपम सजे मात अपराजिते,
स्रग्विणी राजभा चार रचने लगे।

राह मिलती रही भाव भरती गयी,
गीत में ढल हृदय भी थिरकने लगे।

राग जीवन सधे काट बाधा सभी,
ताल उलझें नहीं लय निखरने लगे।

डगमगाते कदम हम चले राह पर
धैर्य विश्वास के साथ बढ़ने लगे।

कर्म कोई अधूरा न छोड़ें कभी,
ईश का यदि हमें साथ मिलने लगे।

कंटकों में खिले हों वही पुष्प हम,
प्रेम सौगात से दिन महकने लगे।