अनारी नर / गोपालप्रसाद व्यास
राधा को मैंने आराधा
गाँधी से छुट्टी पाने पर।
मर्दों से उठ विश्वास गया,
शास्त्रीजी के उठ जाने पर।
अब नारी का युग आया है,
पुरुषों के पुरखो, सावधान।
नर से लेकर वानर तक की,
आएगी अक्ल ठिकाने पर।
युग योगेश्वर का बीत गया,
दिन मर्यादापति के बीते।
रावण से लेकर रामचन्द्र,
चिल्लाते हैं-सीते ! सीते !!
इसलिए बदलकर अपना स्वर,
मैं 'व्यास' उठाकर अपना कर।
कहता हूं- बन्दो, याद रखो,
नारी के बिना अनारी नर।
पश्चिम की जय ! जिसका प्रकाश
भारत पर बढ़ता आता है।
काली कमली पर सूरदास,
रंग दूजा चढ़ता जाता है।
नारियां हो चलीं टॉप-लेस,
नर बॉटम-लेस बनेगा कब?
काशी के पंडित, बतलाओ-
भारत अब नरक बनेगा कब?
गदहा जैसे लादी-विहीन,
नेता जैसे खादी-विहीन,
नर उसी तरह ही लगता है
नारी के बिना मलीन, दीन।
जिस नर ने ना-ना सुनी नहीं,
ना 'री-री' का रस पाया है।
वह नर है नहीं, नराधम है,
या नरक भोगने आया है।
नर डबल हुआ तो नारा है,
मिस प्रिंट हुआ तो मारा है।
दर-दर फिरता बेचारा है,
'हर' भी नारी से हारा है।
नर तो नरकुल है, बांस निरा,
उसका जग-जीवन निष्फल है।
नर 'नीरो' है, नारी नीरा,
नारी मांगलिक नारियल है।
नारी अनमोल रतन-धन है,
नारी कंचन है, हीरा है।
नारी नयनों का अंजन है,
मीरा है वही ममीरा है।
है ग्रीवा (नार) नारि-वाचक,
ठोड़ी उनकी ठकुराई है।
ले, नाक खुदा ने पहले से ही,
स्त्री-लिंग बनाई है।
मुंह बंद हुआ, सिल गए ओंठ,
हैं दांत निपोरे लाखों ने,
नर कान पकड़कर बोल उठा-
जी, सितम ढा दिया आँखों ने।
लट स्वयं नारि-वाचक भाई,
इसमें योगी-जन लटक गए।
चोटी लहराई जब उनकी,
चोटी वाले सिर पटक गए।
तोड़ा 'अनार' तो नार मिली,
कचनार खिली तो नार मिली।
रतनार हुईं उनकी आंखें,
अपनी आँखों को नार मिली।
है नार बनारस के उर में,
वह नारनौल में है आगे।
जब से पीछे पड़ गई नार,
फिरते सुनार भागे-भागे।
है शमा नारि, नर परवाना,
यह मरीचिका, वह दीवाना।
है चषक पुरुष, नारी साकी,
नारी मय है, नर मयखाना।
नारी लस्सी, नारी कॉफी,
वह गर्म चाय की चुस्की है।
वोद्का वही, शैम्पेन वही,
वह काकटेल है, व्हि्स्की है।
नारी बरफी है, गुंझिया है,
चमचम है, लौज मलाई है।
नर तो खोया है जला-भुना,
नारी ही बालूशाही है।
जी, मूल नहीं, नारी मूली,
वह सेम, मटर आनंदी है।
नर सड़ा सिंगाड़ा पानी-फल,
नारी तो शक्करकन्दी है।
कांटा गुलाब में पाओगे,
कलियों में नाग नहीं होगा।
चंदा में पाओगे कलंक,
बिजली में दाग नहीं होगा।
नर वर्किंग डे, नारी छुट्टी,
नर झगड़ा है, नारी यारी।
नारी पक्की आढ़त दुकान,
नर तो है कच्चा व्यापारी।
नारी बेसिक पे, तनखा है,
नर तो ऊपर का भत्ता है।
नर कांटा, नारी कलिका है,
नारी डाली, नर पत्ता है।
नारी कुर्सी है, सत्ता है,
नर अगर-मगर अलबत्ता है।
नारी तो सुघर बम्बई है,
नर तो गंदा कलकत्ता है।
अपयश यदि मिला, मिल गया नर ,
मिल गई कीर्ति तो नारी है।
यदि मिला नरक तो नर-माथे?
मिल गई मुक्ति तो नारी है।
आज़ादी शब्द नारि-वाचक,
नर भ्रष्टाचार, कुशासन है।
नर है अभाव-दुष्काल युद्ध,
नर कर्ज़ा है, नर राशन है।
रावण को था अभिमान बहुत
जिसको सीता ने चूर किया।
दुर्योधन का दुर्द्धर्ष दर्प,
द्रुत द्रुपद-सुता ने दूर किया।
नेपोलिन-से सेनापति को,
नारी ने नाच नचाया है।
भारत में भी नर का आसन,
नारी ने ही हथियाया है।
आज नगर में कोलाहल,
नर-नारी दोनों व्याकुल।
कोने-कोने में पर्चा,
घर-घर में जिसकी चर्चा।
नर ने जो अन्याय किया,
नारी को निरुपाय किया।
उसका प्रतिशोधन होगा,
नर का अवरोधन होगा।
खैर, सुनो अब माताओ,
बहनों, भाग्य-विधाताओ !
जाति-धर्म संकट में है,
खतरा बड़ा निकट में है।
हमने नर को जन्माया,
पाला, पोसा, पनपाया।
देह नहीं, शिक्षा भी दी,
उसे प्रणय-भिक्षा भी दी।
शिशु को दूध, युवक को तन,
बूढ़े, रोगी को श्रम-कण।
दिया हौंसला कायर को,
शेर सुझाए शायर को।
जन्मा-खुशियों में खोईं,
मरा-बैठकर हम रोईं।
हम नर पर मिट धूल हुईं,
किन्तु बड़ी ये भूल हुईं।
नारी, नर की धाय नहीं,
बिना सींग की गाय नहीं।
नहीं पैर की जूती है,
उसकी बजती तूती है।
किसने रहपट-पाट किया?
मेन कनक्शन काट दिया !
हाउस फुल, पर लाइट गुल,
होने लगी सभा व्याकुल।
चीखी पुरुषोत्तमा प्रिया-
"नर ने सेबोटाज किया।"
बसें रूट से गायब थीं,
भारी मुश्किल आयद थी।
तांगे मांगे मिले नहीं,
रिक्शेवाले हिले नहीं।
फटफट पास नहीं फटकी,
चटपट निकल दूर सटकी।
चन्द्रमुखी सुन म्लान हुई,
सरला सिंगल-डान हुई।
मृदुला चुप मजबूर हुई,
अंगूरी अमचूर हुई।
रजनी बोली-"सुन, रीता,
यह तो बहुत बुरा बीता।
आज मोहल्ला डोलेगा,
कौन किवाड़ें खोलेगा?"
फूलमती भी फूल गई-
'हम आईं क्यों? भूल गई।
सास मकान उठा लेगी,
पुरुषोत्तमा बचा लेगी?'
धूप सूर्य से अलग नहीं,
जल से मछली विलग नहीं।
चंदा बिना उज्यारी क्या,
प्रियतम के बिन प्यारी क्या?
नीति नारि, पुरुषारथ नर,
प्रीति नारि, परमारथ नर।
क्यों अटकाती रोड़ा है?
नर-नारी का जोड़ा है।
प्रतिभा बोली -"ठीक कहा,
हमने अब तक बहुत सहा।
ब्रह्म नाम ही भ्रम का है,
यह विस्फोट अहम् का है।