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अनिर्णय / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
अलग-अलग पाँवों की
अलग-अलग पगडंडी,
इस पर मैं निकल पड़ूँ
या उस अपर हो लूँ?
अलग-अलग आँखों का
अलग-अलग सुख-सपना
किसको मैं बंद रखूँ
किसको मै खोलूँ?
अलग-अलग पर्दों के
अलग-अलग कान हैं,
इधर फुसफुसा दूँ मैं
या उधर बोलूँ?
अलग-अलग हाथों में
अलग-अलग पलड़ें हैं,
इस पर बिठाऊँ तुम्हें
या उस पर तौलूँ?