अनिसुर रहमान / यतीश कुमार
(बीएसएफ़ का जवान
जिसने भारत और बांगला देश की सीमा पर
पशु तस्करी को रोकने के लिए
बम के गोले खाए और उसके बदन के कई हिस्सों में छर्रे घुस गए)
इस अंधेरे में भी तुम कैसे ?
बिज़ुका से बन जाते हो
जबकि हमसे कहा जाता है
कि तुम्हारी जाति
अब विलुप्त हो रही है
वे ये भी कहते हैं
तुम हम में से नहीं हो
पर तुम हर बार साबित कर जाते हो
कि तुम्हारे बदन की मिट्टी
मेरी मिट्टी सी ही सोंधी है
अखंडता के केंद्र में
जहाँ गुरुत्वाकर्षण सबसे ज़्यादा है
ठीक वहीं ठुकी कील हो तुम
जिसे उखाड़ने की कोशिश में बहुरूपिये
रथ यात्रा में शामिल हो रहे हैं
अनिसुर तुम्हें कितनी बार
इस कलयुग में ईसा बनना पड़ेगा
कि लोग पत्थर मारेंगे
और तुम उन्हें माफ करते रहोगे
बम तुम्हारी ओर जब लपका
तो तुमने गेरुआ,सफ़ेद या हरा
क्या पहना था ?
सवाल में रंग इतना घुल गया है
कि मेरी नज़र धुँधला गई है
पर इस धुँधलके में भी देख रहा हूँ
तुम्हारी छाती में धँसा
एक -एक छर्रा
वह रास्ता बना रहा है
जहाँ से हज़ारों अनिसुर
बनने की राह तैयार हो रही है
बनग़ांव से कोलकाता के सफ़र में
जब रक्त तुम्हारे शरीर से बिखरकर
बंगाल की मिट्टी में
अपने बीज बो रहा था
तब क्या सोच रहे थे तुम
कि तस्करी पशुओं की थी
धर्म की या इंसानियत की
और तुम बन गए वो गौरक्षक
जिसने लोगों को नहीं
लोगों ने जिसको मारा
एक सोच हो तुम
जिसकी खिंची लकीर
और बनाई राह
पर देश को चलना है
तुम मर नहीं सकते