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अनुगीत-5 / राजकुमार
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आदमी छै कहाँ, जौं छै त सहमलोॅ डरलोॅ
आरु हुनकोॅ थपेड़ सें, छै दुबकलोॅ डड़लोॅ
जहाँ भी जाय छी, पाबै छी भयानक जंगल
कुंद चन्दन छै, कुल्हाड़ी रोॅ मान छै बढ़लोॅ
बाघ-भालू भीरीं, भेलोॅ छै आदमी बौना
हुनकोॅ नाखून छै बढ़लोॅ, कपोत पर पड़लोॅ
आय काबिज हुनी, सागर अकाश धरती पर
जाल हुनके छै, फ्रेम में भी छै हुनीं मढ़लोॅ
‘राज’ लागै छै, बगदलोॅ छै समुन्दर फेनूँ
आग उठलोॅ छै, लहर छै कमान पर चढलोॅ