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अनुपस्थिति / अजित कुमार
Kavita Kosh से
जो अभेद्य थे,
वे कवच
शोभायमान हैं सम्मुख...
धड़कती हुई निरीह काया वह
गई कहाँ ?
खोज रहा मैं
कब से !