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अनुभूति / चंद्र कुमार जैन

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चाहता हूँ
मन खुले
ऊन के गोले की तरह
कि बुन सकूँ
स्वेटर कविता की...

चाहता हूँ
धुना जाये यह मन
कपास के गट्ठर की तरह
कि पिरो सकूँ धागो में
जीवन के बिखरे फूलों को
कि बना सकूँ एक माला
अनुभूति की...