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अनुराग तुम्हारा / संज्ञा सिंह
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अखंडित
अनुराग तुम्हारा
राग बना रहा मेरे लिए
खंडित दलित
प्यार मेरा
कहीं से भार नहीं बना
तुम्हारे लिए
तुम सब कुछ करते रहे
आह में चाह के स्वर
सहेजे
मै
तुम्हारे लिए
न बचा सकी
ख़ुद को
रचनाकाल : 1995, विदिशा