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अनुवाद / मारिन सोरस्क्यू
Kavita Kosh से
मैं एक इम्तहान में बैठा था
एक मृत भाषा के साथ
और मुझे अनुवाद करना था
स्वयं का
मनुष्य से बन्दर में ।
मैंने धैर्य रखा
एक पाठ का अनुवाद करते हुए
जो जंगल से था ।
परन्तु अनुवाद कठिन होता गया
जैसे-जैसे मैं ख़ुद के करीब पहुँचा
थोड़ी कोशिश के साथ
मुझे नाख़ूनों और पैरों के बालों के लिए
पर्याय मिल गए
घुटनों के आसपास
मैंने हकलाना शुरू कर दिया
हृदय की तरफ़ जाते हुए मेरे हाथ काँपने लगे
और काग़ज़ पर रोशनी के दाग़ लगा दिए
फिर भी मैंने मरम्मत की कोशिश की
बालों और छाती के साथ
परन्तु बुरी तरह असफल हुआ
आत्मा के मामले में ।