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अनुशासन / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
स्कूल के विशालकाय फाटक पर
खूँटियों में टंगी रहती हैं
बच्चों के माप की जंजीरें
जिन्हें पहनकर ही
प्रवेश कर सकते हैं वे
कैम्पस में
बच्चे उन्हें उतारते हैं
पहनते हैं
और अपना बचपना
वहीं छोड़कर
बड़े-बुजुर्ग बन जाते हैं
खामोश..गम्भीर
संयमित बुजुर्ग
पर ज्यों ही बजती है छुट्टी की घंटी
वे दौड़ पड़ते हैं फाटक की ओर
उतार-उतार कर फेंकने लगते हैं जंजीरें
जल्दी-जल्दी पहनते हैं
अपना बचपना
और बच्चे बन जाते हैं
हँसते-खिलखिलाते
शरारतें करते
उलटे-सीधे हाथों से
टाटा..बाय...बाय करते
पिंजरे से आजाद पक्षियों से
चहचहाते बच्चे