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अन्त की कविताएँ-3 / तेजी ग्रोवर
Kavita Kosh से
कोई हिला गया है
यह खेल जो बच्चे जमा कर गए हैं
खेल छोड़ जो पानी वे पीने गए हैं
उनके गड्ढों में कोई वही पानी भर गया है
कँचों को सरका पेड़ के पीछे छिप गया है
कोई हिला गया है
नींद में पकते हुए फल की मिठास थम गई है
नन्ही चिड़िया की उठी हुई पूँछ के नीचे लाल निशान बनने से पहले
सृष्टि के रंग-विधान ही को कोई हिला गया है
एक सुन्दर जीव अपनी ओर से केंचुल छोड़ रहा है
उसे पता नहीं, कोई केंचुल नहीं है
मनुष्यों में उन्हें ही सुख है
वही श्रेष्ठ हैं
दुख मनाने के लिए
जिनके पास दुख अभी शेष है