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अन्तर्दाह / पृष्ठ 4 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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विरही मधुकर की ममता
यदि आ कर द्वार टटोले ,
व्रीड़ा है, तंद्रिल पलकें
यदि कोई कुसुम न खोले ; ।।१६।।

है किसका दोष बताओ
मधुकर का या फूलों का?
मादक मरन्द का अथवा
मलयानिल की झूलों का? ।।१७।।

पल पल का भूला सुख वह
सागर - सा हहर रहा है,
मानस में बादल बनकर
दुख ही दुख घहर रहा है ।।१८।।

निर्मम तट से टकरा कर
चिल्ला उठतीं ज्यों लहरें,
वैसे ही बिलख रहे हैं
पहले के अनुभव गहरे ।।१९।।

जीवन - नद उमड़ चला है
मन - माझी विगत सहारा,
तन - नैया पड़ी भँवर में
दीखे ना कूल - किनारा ।।२०।।