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अन्तहीन हैं मेरी इच्छाएं / देवयानी
Kavita Kosh से
समय बहुत कम है मेरे पास
और अन्तहीन हैं मेरी इच्छाएं
गोरैया सा चहकना चाहती हूँ मैं
चाहती हूँ तितली कि तरह उड़ना
और सारा रस पी लेना चाहती हूँ जीवन का
नाचना चाहती हूँ इस कदर कि
थक कर हो रहूँ निढाल
एक मछली की तरह तैरना चाहती हूँ
पानी की गहराइयों में
सबसे ऊंचे शिखर से देखना चाहती हूँ संसार
बहुत गहरे में कहीं गुम हो रहना चाहती हूँ मैं
इस कदर टूट कर करना चाहती हूँ प्यार कि बाकी न रहे
मेरा और तुम्हारा नमो निशान
इस कदर होना चाहती हूँ मुक्त कि लाख खोजो
मुझे पा न सको तुम
फिर
कभी भी कहीं भी.