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अन्तिम सांस बन कर / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
मत आना
कल
इतिहास बन कर मत आना तुम,
एक विस्मृति के साथ तो मैं जीवन भर रह नहीं सकूंगी।
तुम अतीत हो
यह मैं तुम्हारी यादों से कह नहीं सकूंगी।
मत आना
दूर का आकाश बन कर मत आना तुम,
एक आभास को बांहों में, मैं कब तक भरे रहूँगी?
सम्पूर्ण समर्पणों के बाद भी
क्या मैं अधूरी, अपूर्ण रहूँगी।
मत आना
खण्डित विश्वास बन कर मत आना तुम,
उम्र के आगे कोई क्षितिज तो मैं तुम्हें दे नहीं सकूंगी।
पर जहाँ तक उम्र है
वहाँ तक मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी।
मत आना
प्यार की अंतिम सांस बन कर मत आना तुम,
मत आना
कल इतिहास बन कर मत आना तुम।