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अन्ध प्रवृत्ति / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
जाड़क राति अन्हरिया घटाटोप
पृथ्वी पर पसरल शशिक कोप
गाछीमे कोनो गाछ तर मचान पर
स्थापित होइत उन्मादक बताह स्वर
कोनो अजान छायासँ छविके परिचय
अन्हारमे सभ सीमा के क्षय
अन्हारसँ हमरा सभकेँ बड्ड प्रेम अछि
मैत्री अछि, हेम-छेम अछि
छी परम अन्ध हम
हमरा सभक जनक अछि तम
इजोतसँ सदिखन डरइत छी
चन्द्रमाक किरनसँ हम सभ जरइत छी
थिक लाज मात्र बन्धन
नैतिकता मात्र धर्म के कटु क्रन्दन