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अन्धेरे दिनों में प्यार / शशिप्रकाश
Kavita Kosh से
नागफनी के जंगलों के बीच से
बहती रहती है
एक दुबली-पतली नदी
मेरे सपनों में I
मौन-अचल पड़कर
इसकी जलधार में,
बस, बहते ही जाना चाहता हूँ
इसकी स्निग्ध-धवल धार में I
क्यों इतनी कड़वी है ज़िन्दगी
हमारे आसपास,
इतनी बेरंग और उदास क्यों है ?
जैसेकि लोगों की एक-एक साँस पर
दुस्वप्नों का कोई बोझ लदा हो I
बीच-बीच में
दुनिया भर की थकान ढोते
खेत से लौटे बैल की तरह
पहुँच जाना चाहता हूँ
तृषित, इस जलधार तक, जो मेरा प्यार है,
बहता रहता है शान्त
नागफनी के जंगलों से होकर
चुपचाप !