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अपना फूल / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
दुकानों पर फूलों की ढेरियाँ लगीहैं
शहर में यहाँ-वहाँ
छोटे-बड़े उद्यानों में तरह तरह के फूल खिलखिला रहे हैं
उन्हें देखना, उनके पास से गुज़रना कितना अच्छा लगता है
किन्तु आज मेरी आँगन वाटिका में
गेंदे का जो पहला फूल खिला
उसे देखने का आनंद ही कुछ और था
लगा कि इस छोटे से फूल ने
मुझे वसंत में रँग दिया है
हाँ इसमें मैं भी तो समाया हुआ हूँ न
इस फूल की मिट्टी मेरी अपनी मिट्टी है
अपने हाथों से जिसे मैंने गोड़ा है
जिसमें बीच डाला है
अंकुर और पौधे को सींचा है
उसे चिड़ियों से बचाया है
रोज-रोज उस पर
मेरी प्रतीक्षा-भरी आँखें बिछी रही हैं
तो लगता है
इस फूल का खिलना मेरा ही खिलना है।
-22.2.2015