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अपना होना / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
कई दिन गुज़रे
ख़ूब रहा उदास
कहीं कोई रोशनी नहीं
हर सिम्त बेआस
इस बेआस दिनों में
ख़ुद को जाना
अपने होने को पहचाना
रचनाकाल : 1994