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अपनी-अपनी रुचियाँ / व्लदीमिर मयकोवस्की
Kavita Kosh से
घोड़ी की नज़र पड़ी ऊँट पर
तो फटी-फटी-सी आवाज़ में
वो हिनहिनाई;
’हे भगवान घोड़ों की सुदर्शन नस्ल में
यह कूबड़ करामात
कहाँ से आई !’
ऊँट ने भी तुर्शी-ब-तुर्शी
उसी लहजे में
जवाब दिया :
’चल-चल ! बड़ी आई !
ग़नीमत समझ की माफ़ किया,
तू भला कैसी, और कहाँ की घोड़ी !
’अरी, तू तो ऊँटनी है,
ख़ुदा के फ़जल से
ठिगनी रह गई थोड़ी ।’
यह तो जानता था
सर्वज्ञानी ईश्वर
या ख़ुदा ही अस्ल में—
कि दोनो पैदा हुए, स्तनपायी
चौपाये पशुओं की
अलग-अलग नस्ल में ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल