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अपनी छाप लिए / केशव तिवारी
Kavita Kosh से
यूँ तो तुम रत्ती भर
नहीं बदले
पर मैं तुम्हे
बदली हुई नज़र से देखता हूँ
तुम्हारे न होने का
ऐलान सुनता हूँ
और तुम्हें देख
आश्वस्त होता हूँ
तुम नही बच पाओगे
सुन कर के ही दहल जाता हूँ
और तुम्हारी विश्वास
से भरी आँखे
मेरा ढाढ़स हैं ।
बदलना ही पड़ा तो
हम मौसमों की तरह
तो बिल्कुल ही
नही बदलेंगे ।
न ही किसी इश्तहार की तरह
ज़िन्दा चेहरों की तरह
अपनी-अपनी छाप लिए
बदलेंगे हम ।