अपनी मातृभाषा / चन्द्रमोहन रंजीत सिंह
निज भाषा को भूलना है भारी अज्ञान।
अपनी भाषा सीखिए, नित होगा कल्याण।
सब कुछ सीखे जगत में, भए गुणों के धाम।
निज भाषा सीखे नहीं, समझो सब बेकाम।
हिन्दी भाषा को पढ़ो, सुनो हिन्दी के लाल।
हिन्दी बोली बोलिए, इस पर नहीं सवाल।
अँगुली रखना आग पर, है यह भारी भूल।
निज भाषा को सीखिए, बढ़े तुम्हारो ज्ञान।
अपनी भाषा को तजें, बोलें अटपट बोल।
हँस-हँस कर शिर पर लिए, हाय अज्ञता मोल।
निज भाषा सीखे बिना, क्या जानोगे खास।
समझोगे कैसे बता, तुम अपना इतिहास।
हिन्दी भाषा भूल मत, करो निरन्तर ध्यान।
हिन्दी भाषा बोलिए होवे निर्मल ज्ञान।
राष्ट्रीय भाषा को पढ़ो, तब हो चतुर सुजान।
तन-मन-धन से कीजिए, निज भाषा प्रचार।
यह उन्नति की मूल है, कीजे सुजन विचार।
हे सपूत सिरनाम के, कर हिन्दी की मान।
खुद पढ़िए पुनि ओर को, कर आकर्षित ध्यान।
गर तुम सीखोगे नहीं, हिन्दी अक्षर ज्ञान।
आगे के सन्तान की, क्या होगी पहचान।