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अपनी मेहनत से कर / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
भीतर का आदमी न टूटे, बुझे नहीं चिनगारी
वर्ना तुझे निगल जाएगी तेरी ही लाचारी।
उठते सूरज की उपमा, गिरते को सौ गाली
परसू, परसा, परसराम की दुनिया बड़ी निराली
जीना है तो करते जाना, जीने की तैयारी।
रिरियाती जुबान से लम्बा सफ़र नहीं होता है
जीवन से जीवट का अन्तरधर्मी समझौता है
बीच सफ़र में मतकर पगले, बातें हारी-हारी।
हुआ न आदरणीय जगत में जिसने हाथ पसारे
डूब गए काले सागर में उसके सॉझ-सकारें
अपनी मेहनत से कर अपनी दुनिया में उजियारी।