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अपनी हार नहीं है / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
नये दौर में लिखना साथी, अपनी हार नहीं है।
हैं अतीत के हम साक्षी जो, अब आधार नहीं है।
बचपन से ही रीति निभायी, देखी दुनिया सारी,
राग द्वेष मनुहार सहज का, अब संसार नहीं है।
धन बल की छाया में जीवन, है खो रहे जवानी
मात पिता की सेवा करने, का सुविचार नहीं है।
पाठ पढ़ा था कुलमर्यादा, लज्जा शील था गहना,
भाव प्रीति सँग नत नयन में, अब श्रंृगार नहीं है।
टूट गए है सभी मिथक अब, मिथ्या संसृति जागी,
गोरख धंधे बहु आयामी, सच संचार नहीं है।
राष्ट्रप्रेम का भाव हृदय में, बढें़़ पुरोधा आगे,
विश्व पटल पर अपनी गरिमा, का भी पार नहीं है।
प्रेम न भाये करुणा ऐसी, करते लोग दिखावा,
भूख मिटाते नेता अपनी, वे अवतार नहीं है।