भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने अँधेरों से हम / अनिरुद्ध उमट
Kavita Kosh से
घर के हिस्से करते पिता
काग़ज़ पर
अपने हिस्से करते
सब को
समान रूप से
वितरण पश्चात
लौटते जब
सरक जाता
किसी ओर
जनम के हिस्से में
तब तक उनके हिस्से का
अन्धेरा
बुला भी नहीं पाते
अपने अन्धेरों से हम
उन्हें