भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने जो दे जाते हैं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
अपने जो दे जाते हैं।
जख़्म नहीं भर पाते हैं॥
यादों के मोहक जुगनू
दूर बहुत ले जाते हैं॥
ख़्वाब मुहब्बत के अब भी
मन को खूब लुभाते हैं॥
एहसासों के गुजरे पल
सांसों को महकाते हैं॥
फुरकत के दिन रातों को
अश्कों से बहलाते हैं॥
हिम्मत है यह अपनी ही
खुद आँसू पी जाते हैं॥
नेता भोली जनता को
वादों से फुसलाते हैं॥