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अपने हिस्से में छाए / कुलदीप सिंह भाटी
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अपने हिस्से में छाए
इन अंधेरों को देखकर
अब नहीं होता हूँ उदास।
क्योंकि मेरे हिस्से का
अस्त सूरज फैला रहा होता है
किसी और के हिस्से में उजास।