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अपनोॅ जीवन / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
भरी आँख लोर
दिल में भरलोॅ दर्द
आरो
चेहरा में भरलोॅ उदासी
अपनोॅ जीवन छेकै
भरलोॅ पाँव बिवाई
रास्ता भरलोॅ काँटोॅ
आरो
जिनगी भर धूपे-धूप
अपनोॅ जीवन छेकै
युगोॅ के जुआ
समय रोॅ मार
आरो
बैलोॅ रंग चुप-चुप रहबोॅ
अपनोॅ जीवन छेकै।