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अपशकुन / पूनम भार्गव 'ज़ाकिर'
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गली के मोड़ पर
कचरे के ढेर के पास
रख आई हूँ एक बड़ा-सा दिया
एक पुड़िया में कुछ पूए
प्रेतों के लिए
और
सहमते हुए कर आई
एक अपशकुन
जला कर बुझा आई हूँ उजाला
मुझे कनखियों से
दिख गया था
वो बच्चा जो
वहाँ कुछ ढूँढता
कर रहा था इंतज़ार
मेरी रुखसती का
उसे भी
करना था इंतज़ाम
अपने घर की चौखट पर रखा
अंधेरा हटाने का
एक आस की बाती जलाने का!