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अप्प दीपो भव / सुजाता 1 / कुमार रवींद्र
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पावन थी
खीर वह सुजाता की -
अमर हुई
वह दिन था विशेष
ममता का -
बोधिसत्त्व होने का
दुक्ख-सुक्ख दोनों के
बंधन को खोने का
मन में थी -
जिज्ञासा जन्मों की
मुखर हुई
एक वर्ष बाद फिर
सुजाता ने रची खीर
थाल भरा सोने का
गई लिये फल्गु-तीर
नहीं मिले
देव उसे
तचती दोपहर हुई
साँझ-ढले घर लौटी
खिन्नमना - बेकल भी
लगा उसे विष जैसा
आँखों में भरा हुआ जल भी
पूरी वह रात
द्वार-रक्षक का
गज़र हुई