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अफ़सोस / वसुधा कनुप्रिया
Kavita Kosh से
मैं जानती थी
नहीं होंगे कभी तुम
सिर्फ मेरे...
जानते बूझते
बनाये रखा
एक भरम
कि तुम्हें
मुहब्बत है मुझसे
और सींचती रही
इसी भरम से
सच्चा प्रेम अपना
तिरस्कार तुम्हारा
सहा हिम्मत से
देख कर बच्चों को
जीती रही आस लिए
मुस्कान फीकी सी
रखी सजा होठों पर
और रोकती रही आँसू
स्वप्न विहीन
बेचैन आँखो में
मैं, जिसे दुनिया ने
ख़ूबसूरत कहा
खोजती रही
स्वीकृति
तुम्हारी नज़रों में
ये हीरे जवाहरात
बेशक़ीमती कपड़े
महंगी गाड़ियाँ
पीछा करते कैमरे,
इन सब की
चकाचौंध में
दबा दी सिसकियाँ
दफ़न कर दिया वजूद
उन्मुक्त पंछी सी
डायना ने
शाही पिंजरे की
कैदी हो कर!
अफ़सोस, न बन सकी
प्रिंसेस ऑफ वेल्स
प्रियतमा तुम्हारी !