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अब जबकि बढ़ चुके हैं खतरे / अनिता भारती

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अब संभल कर उठाने होंगे
अपने दायें और बायें कदम
अब खतरा नदी की तरह
बाड़ तोड़ता हुआ
पहुँच चुका है
हमारे दफ्तर
खेत-खलियान
फैक्ट्री, चायखाने
स्कूल कॉलेज
और उन बंद कमरों में भी
जो हमेशा बंद ही रहते थे

जिनको सौंप दी थी
हमने परिवर्तन की चाभी
अपना भाई-बंधु, मित्र
हमराही समझकर
आज वे
उस ताले की चाभी से
राजनीति के पेंच खोलने लगे हैं
वे सब जो कभी कहलाते थे
अमनवादी,लोकवादी
विकासवादी जनतासेवी
आज वे दिन-दहाड़े
सियारों की तरह हुआँ-हुआँ कर
माहौल को और भंयकर
बना रहे हैं...

हमारे परिवर्तन के ताले की चाभी
से खोल रहे हैं
चालीस चोरों की तरह
खुल जा सिमसिम का दरवाजा
जहाँ रखा था हमने संभाल कर
अपना भरोसा अपना प्यार
अपना सहयोग और सब कुछ
जो बहुत अनगिनत है
पर सब उजड़ चुका है
अब सब लुट चुका है

सुनो
मत करो
वैचारिकता से अलग
भावुक भोली अभिव्यक्ति
क्योंकि चालीस चोरों का झुंड
बैठा ताक में जो कर लेगा
इस्तेमाल कर लेगा तुम्हारी
कीमती भावुक भोली अभिव्यकित
क्योंकि हर बार तुम्हारी अभिव्यक्ति
उनकी अभिव्यकित के
उस खून के घूंट के समान है
जो भेड़िये को और हिंसक बना देती है।