भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब न जनता मुल्क की दिलगीर होनी चाहिए / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब न जनता मुल्क की दिलगीर होनी चाहिए
घुप अंधेरे की जगह तनवीर होनी चाहिए।

चाह कर भी जो हमें मिलने गले देती नहीं
टुकड़े टुकड़े आज वो जंज़ीर होनी चाहिए।

कोई ग़फ़लत देश के बारे में दुनिया को न हो
साफ अपने मुल्क की तस्वीर होनी चाहिए।

दर्द का ही दूसरा है नाम शायद ज़िन्दगी
फिर ये कैसे ज़िन्दगी बे-पीर होनी चाहिए।

हमने माना इश्क़ पूजा है इबादत है मगर
कामयाबी के लिए तक़दीर होनी चाहिए।

वाक़ई तस्कीन पहुंचे वो दवा दे चारागर
हो करम मौला दवा अक्सीर होनी चाहिए।

जीतना 'विश्वास' हो या मुल्क या दिल दोस्तो
हाथ में किसने कहा शमशीर होनी चाहिए।