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अब न संभले हम यहाँ तो जलजला हो जाएगा / अविनाश भारती

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अब न संभले हम यहाँ तो जलजला हो जाएगा,  
आदमी से आदमी का फ़ासला हो जाएगा।  

क्यों कही यूँ शायरी में बात सच्ची आपने,  
देख लेना अब नया ही मामला हो जाएगा।  

अपने दिल में घर बनाया मैंने तेरे वास्ते,  
तेरे दिल में मैं रहूँ तो क्या भला हो जाएगा?  

कर रहे हो बात मुझको यूँ मिटाने की यहाँ,
आ कभी मैदान में फिर फैसला हो जाएगा।  

स्याह अँधेरा दिखे है क्यूँ मुझे अब गाँव में,
क्या यहाँ भी नफ़रतों का दाख़िला हो जाएगा।

ख़्वाब में भी ये कभी 'अविनाश' सोचा मैं न था,  
देश से ऊँचा धरम का वलवला हो जाएगा।