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अभिनेता / हरिओम राजोरिया

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मैं एक ऐसे अभिनेता को जानता हूँ
जो स्टेशन पर उतरते ही
चलने लगता है मेरे साथ-साथ
बार-बार लपकता सामान की ओर
पूछता हुआ, ‘‘कहाँ जाना है भाई साहब ?
चलो, रिक्शे में छोड़ देता हूँ,’’
उम्मीद की डोर से बंधा
अपनी घृणा को छुपाता हुआ
वह काफ़ी दूर चलता है मेरे पीछे-पीछे

भर दुपहरी में
जब सब दुबके रहते हैं अपने-अपने घरों में
उस बूढ़े अभिनेता का क्या कहना
बहुत दूर सड़क से
सुनाई पड़ती है उसकी डूबी हुई आवाज़
जो बच्चों के लिए कुल्फ़ी का गीत गाता है

एक लड़का मिलता है टॉकीज के पास
रास्ता चलते पकड़ लेता है हाथ
मैं भयभीत होता हूँ इस अभिनेता से
मैं डरता हूँ उसकी जलेबियों से
वह ज़िद के साथ कुछ खिलाना चाहता है मुझे
मेरे इनकार करने पर कहता है,
‘‘समोसे गरम हैं
कहो तो बच्चों के लिए बांध दूँ ?’’

एक अभिनेता ऐसा है शहर में
जो कपड़ा दुकान के अहाते में
बैठा रहता है कुर्सी लगाए
हर आते-जाते को नमस्कार करता
दिनभर मुस्कुराता ही रहता है
और महीना-भर में
सात सौ रुपया पगार पाता है

गली, मोहल्लों, हाट, बाजार और सड़कों पर
हर कहीं टकरा ही जाते हैं ऐसे अभिनेता
पेट छुपाते हुए अपनी-अपनी भूमिकाओं में संलग्न
जीवन से ही सीखा है उन्होंने अभिनय
जरूरतों ने ही बनाया है उन्हें अभिनेता
ऐसा भी हो सकता है अपने पिता की उंगली पकड़
वे चले आयें हो अभिनय की उस दुनिया में
पर उनका कहीं नाम नहीं
रोटी के सिवाय कोई सपना नहीं उनके पास
ऐसे कुछ लोग भी हैं इस समाज में
जो इन अभिनेताओं की करते हैं नकल
और बन जाते हैं सचमुच के अभिनेता।