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अभिमान / धनंजय वर्मा
Kavita Kosh से
जब मन थक जाए
कई बार
कुछ पल ऐसे भी आते हैं
अभीसिप्त कुछ मिल जाता है
वसन्त की अँगड़ाई में
कभी भी
यौवन की बाहें अनखुली नहीं रहीं ।
वसन्त चले भी जाओ,
प्रतिदान माँगता हूँ,
दान नहीं...