भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभिलाषा / तोरनदेवी 'लली'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मुझसे मिल जाना इकबार।
कहाँ-कहाँ मैं ढूँढ़ रही हूँ, कब से रहो पुकार।
मुझसे मिल जाना इकबार॥
नव-कुसुमों की कुंज-लता में,
निशि-तारों की सुन्दरता में,
सरल हृदय की उज्ज्वलता में,
कुसुमित दल की माधुरता में।
कितना तुमको खोज चुकी हूँ,
जिसका वार न पार।
मुझसे मिल जाना इकबार॥
सरिता की गति मतवाली में,
प्रिय वसन्त की हरियाली में,
बाल-प्रभाकर की लाली में,
निशा-नाथ की उजियाली में।
आशावादी बनकर लोचन,
अब तक रहे निहार।
मुझसे मिल जाना इकबार॥
अब देखूँगी उत्थानों में,
देश-प्रेम के अभिमानों में,
वीर-श्रेष्ठ के गुण-गानों में,
अमर सुयश शुभ सम्मानों में।
दर्शन होते ही तज दूँगी,
हिय-वेदना अपार।
मुझसे मिल जाना इकबार।