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अभी-अभी / राकेश रंजन
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अभी-अभी जनमा है रवि
पूरे ब्रह्मांड में पसर रही है,
शिशु की सुनहरी किलकारी
पहाड़ों के सीने में
हो रही है गुदगुदी
पिघल रही है
जमी हुई बर्फ़...
चिड़ियाँ गा रही हैं गीत
जन्मोत्सव के
हर्षविह्वल वृक्ष
खड़े हैं मुग्ध-मौन
पुलकित पात बजा रहे हैं
सर-सर
सोने के सिक्के
लुटा रहा है आकाश...
अभी-अभी जनमा है रवि
अभी-अभी जनमा है प्रात
रात की मृत्यु के पश्चात
अभी-अभी जनमा है कवि!