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अभी चुका नहीं हूँ मैं / विमल राजस्थानी

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(कवि की जिजीविषा)

अभी थका नहीं हूँ मैं
अभी चुका नहीं हूँ मैं
अभी तो मंजिलें कई हैं जो कि बहुत दूर हैं
थका हूँ थोड़ा-थोड़ा पर जुनून है, सुरूर है
अभी तो कुछ विशेष है जो लिख सका नहीं हूँ मैं
अभी थका नहीं हूँ मैं
अभी चुका नहीं हूँ मैं
वह उम्र भी क्या उम्र जो-
न सौ के पार जा सके
डगर-डगर न प्रेम के-
प्रसून जो बिछा सके
मनुष्य क्या मनुष्य के-
जो काम कुछ न आ सके
जो शव सरीखे सुप्त हैं
उन्हें नहीं जगा सके
धरा का ज्योति-पर्व, शब्द का गुमान-गर्व हूँ
सितारों के समान व्योम में टँका नहीं हूँ मैं
मनुष्य के हृदय की धड़कनों में, साँस-साँस में
रचा-बसा मनुष्य धूल-धूप में पका हूँ मैं
अभी थका नहीं हूँ मैं
अभी चुका नहीं हूँ मैं